सूक्ति त्रिवेणी | Sukti Triveni Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
दूसरी बात यह थी कि दो हजार वर्ष पुरानी भाषा का बर्तमान के साथ सौधा अर्थबोध बान प्राय विच्छिन-सा हो चुका है तदयुगीन कुछ विशेष शब्दो बौर उपमानो से वर्तमान लगभग अपरिचित-सा है ।
ऐसी स्थिति मै अफूल-सूक्तियों को केवल शम्वानुवाद के साथ प्रस्तुत कर देना, पाठक की अर्थचेतना के साथ न्याय नहीं होता। अतः अनुवाद को प्राय. भावानुलक्षी रखने का प्रयत्न मैंने किया है,
ताकि पाठक मुक्तियो के मूल अभिप्राय को सरलता से ग्रहण कर सकें । साथ ही मून के विशिष्ट सास्कृतिक एव पारि भाषिक पाल्दो से सम्पर्कयारा बनाये रखने की रष्टि सूचित भी कर दिया गया है।
जैन वाउ मय प्राकृतेतर सस्कृत आदि का साहित्य, प्राकृत साहित्य से भी अधिक विशाल एवं सुभाषित वचमो से परिपूर्ण है, किस्त संकलन के साथ एक निश्चित दृष्टि एवं सीमा होती है,
वह सोमा हम प्राकृत भाषा को साहित्य तक ही लेकर चले, इसलिए सरकत आदि भापायो के साहित्य का क्षेत्र एक मोर खोडकर ही चलना पहा ।मुझे विश्वास है
जैन तत्वचिग्सन के साथ-साथ उसका नंतिक एन चारित्रिक जीवनदर्शन भी इन सूक्तियो मे पूर्ण रूप से आता हुआ मिलेगा और यह जैनेलर विद्वानों के लिए भी उतना ही उपयोगी होगा
जिसना कि जैन दर्शन के परम्परागत अभ्यासी के लिए।अ्रमणरस्कृति का एका प्रवाह जैनवारा है तो दूसरा प्रवाह बुखार है । जौनपुर के समान ही यह पवित्र वारा पक्षपीस सौ वर्ष से भारतीय
दिगतो को स्पर्श करती हुई बभिरत गति से वह रही है। भारत ही नही, किन्तु बौत, जापान, लका, वर्मा, कम्बोडिया, भाई देवा आदि अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज को भी इसने प्रभावित किया है ।
तथागत बुद्ध तथा उनके प्रमख शि्यो के अन्यारिमक एव मेतिया उपदेश, विपिटक साहित्य मे ज भी सुरक्षित है। त्रिपिटक साहित्य भी भारतीय मार मय का महत्वपूर्ण
लेखक | उपाध्याय अमरमूनी-Upadhyay Amarmuni |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 815 |
Pdf साइज़ | 17 MB |
Category | इतिहास(History) |
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