श्री चैतन्य चरितावली | Chaitanya Charitavali PDF In Hindi

श्री चैतन्य चरितावली – Sri Chaitanya Charitavali Five Part Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश

इन्होंने नम्रताके साथ उत्तर दिया-श्रीकृष्ण कयामें भला क्या दि और क्या अशुद्धि । भक्त अपने भक्ति-भाव. आवेशमें आकर जो भी कुछ लिखता है, वह परम शुद्ध ही होता है ।

जिस पदमै भगवत्-मक्ति है, जिस छन्दमैं श्रीकृष्ण लीलाका वर्णन है यह अशुद होनेपर भी शुद्ध है और जो काव्य श्रीकृष्ण-कथासे रहित है चह चाह किन ना मी ऊँचा काव्य क्यों न हो,

उसकी भाषा चाहे कितनी भी दिया क्यों न हो, वह व्यर्थ ही है । भगवान् ती मायग्राही है, वे घट घट की बातें जानने है येचारी भाषा उनकी विरदावलीका बखान कर ही क्या सकती है,

उनकी प्रसन्नतामें तो गुद्र भावना ही मुख्य कारण है । अर्थात् मूर्व कहता है यिष्णाय नमः’ ( पयार्थमें भषिण्णु’ शब्दका चतुर्थीम विष्णवे बनता है मूर्ख ।

रामाय’ और गणेश की तरह अनुमान विष्णाय लगाकर दी भगवान् को नमस्कार करते है विष्णवे नमः’ परिणाम दन दोनों का कट समान ही है ।

क्योंकि भगवान् जनार्दन तो भाय्राही हैं। उनसे यह बात छिपी नही रहती कि वेष्णाय फहनेमे भी उसका भाव मुझे नमस्कार करनेका ही या नमाई पण्डितका ऐसा उत्तर सुनकर पुरी महाशय अत्यन्त प्रसन्न हुए।

उन्होंने प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा-यह उत्तर तो आपकी महत्ताका एक दिन म भुगते सुनते एक भातुके सम्बन्ध में इन्दने कदा- पद भाव मात्मनेपदी नहीं है परस्मैपदी’ है ।’

पुरी उसे आत्मनेपदी ही समशे पैे थे । इनफी पाते उन्हें गया दो गयी। इनके चले जाने के पभात् पुरी रातभर उग

धातुके दी राम्यन्धरमें सोचते रहे दूसरे दिन जब थे फिर पुस्तक गुनने आये तो इनसे पुरीने कदा- आप जिरो परस्मैपदी भानु बताते पे) यह तो भात्मनेपदी दी है। यह पदक उन्दोंने उस पातु को शिव करके इन्हें बताया ।

लेखक प्रभुदत्त ब्रह्मचारी-Prabhudatt Brahmachari
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 1778
Pdf साइज़56.2 MB
Categoryआत्मकथा(Biography)

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