सतपंथ ज्ञान साहित्य संगम | Satpanth Gyan Sahitya Sangam Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
अनुवाद-इतना कह कर सूर्य भगवान अन्तर्ध्यान हो गये और सूयाश पुरुष ने, बादेशानुसार, मय से जो विनीत भाव से झुके हुए बौर हाथ जोड़े हुए थे कहा एकाप चित होकर यह उत्तम शान सुनो,
जिसे भगवान सूर्य ने स्वयम् समय-समय पर महर्षियों से कहा था; भगवान सूर्य ने पहले जिस शास्त्र का उपदेश दिया था वही आदि शास्त्र यह है; युगों के परिवर्तन से केवल काल में कुछ भेद पड़ गया है ।
विज्ञान भाष्य-नवें श्लोक के दूसरे पद का कुछ लोग यह अर्थ करते हैं कि सूर्य भगवान ने जिस शास्त्र का उपदेश महर्षियों को किया था वही शास्त्र बिना किसी परिवर्तन के यह है,
केवल कहने के समय में भेद है परन्तु यदि इसका यही अर्थ होता तो यह कहने की क्या आवश्यकता थी कि वे वल काल में भेद है, पहले पद में जो कुछ कहा गया है वही पर्याप्त था ।
इसलिए इस पद का अधिक युक्तियुक्त अर्ष यह है कि पहले के बतलाये हुए और इस समय बतलाये जाने वाले ज्योतिः- शास्त्र में यदि कुछ भेद है तो वह काल के कारण हो गया है, तत्वतः कोई अन्तर नहीं है ।
काल के कारण भेद कैसे हो सकता है; इस का कारण यह है कि ज्योति: शास्त्र प्रयोगात्मक विज्ञान है और प्रयोग में कुछ न कुछ सूक्ष्म भुल रह ही जाती है, जिसे प्रयोगात्मक भूल (Experimental error) कहते हैं
ज्योतिःशास्त्र में यह भूल प्रति वर्ष इकट्ठी होती रहती है और सैकड़ों वर्ष के बाद वह बहुत बड़ा रूप धारण कर लेती है; इसलिए समय-समय पर उसका संशोधन करना पड़ता है, जिसको बीज-संस्कार कहते हैं ।
लेखक | महावीरप्रसाद श्रीवास्तव-Mahavirprasad Srivastav |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 258 |
Pdf साइज़ | 63.1 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
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