संताल संस्कार की रुपरेखा | Santal Sanskar Ki Ruprekha Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
संतानों ने अपने को संताल कहकर पुकारा गाना पहले पसन्द नहीं किया था। वह तो सन् १९१७ के बाद से अपने को बे संताल कहने मगे है। संतालों ने किसी अजनबी को अपना नाम और गोत्र वतनाना सिर्फ सन् १६१७ ई० से सीखा है। उससे पहले थे सिर्फ मामी कहकर अपना परिचय दिया करते थे।
संताल-विद्रोह के नेता सिदो के नाम के साथ मांझी शब्द ही मिलता है। सन् १८७० में अहिंसात्मक संघर्ष बाबा भागीरथ के नेतृत्व में प्रारम्भ हुमा या । मांभी शब्द हो सगा हुआ था। उनके नाम के साथ अाज भी मांझी शब्द का प्रयोग माम के साथ होता है।
संतान परगना में संतानों के नाम के साथ मांझी का जोड़ा जाना कम हो गया है, पर संताल परगना के बाहर के संताल अपने नाम के साथ मांझी ही जोड़ते हैं। मानभूमि, सिंहभूमि श्रीर मयूर- भंज के संताल माज भी अपने नाम के साथ मांझी शब्द जोड़ने में गौरव का अनुभव करते हैं।
संताल परगना में पाज भी मांझी की उपावि गौरव को उपाधि है। वे गाँव के प्रमुख को मांझी ही कहते है। जो व्यक्ति संतालों का धार्मिक अनुष्ठान करता है , उसे भी जोगमांझी वे कहते हैं। संताल मांझा का प्रयोग आदर सूचक शब्द के रूप में करने लगे है।
संताल उनकी जाति का बोधक शब्द बन गया है। फिर भी संताल जब आपस में मिलते हैं, तब वे अपने को संताल नहीं कहते हैं ।’संताल’ शब्द का पूर्व म संथाल रहा होगा-ऐसा माना जाता पर इन दोनों संताल और सन्पाल शब्दों के पूर्व १८ बी सबी में सान्ताड’ औौर ‘खान्याड़’ रहा था।
बे सौंगताइ भी कहलाते थे साँचीर- नाड़ शब्द का भी प्रयोग हमें मिलता है। बंगला में सौभ्रोताड़ को साँधरो- नाम कहा जाता है पंजों ने भी सांप्रोताल शब्द का प्रयोग किया है। वभिन्न व्यक्तियों ने विमिश्न ढंग से इन शब्दों का प्रयोग किया है।
लेखक | उमाशंकर-Umashankar |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 642 |
Pdf साइज़ | 29.1 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
संताल संस्कार की रुपरेखा | Santal Sanskar Ki Ruprekha Book/Pustak Pdf Free Download