प्रेरणा भरे पावन प्रसंग | Prerna Bhare Pawan Prasang Book/Pustak PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
सच्चे अतिथि
महाराष्ट्र के संत श्री एकनाथ जी को छह मसखरे युवक सदा तंग किया करते थे। एक बार एक भूखा ब्राह्मण उस गाँव में आया और भोजन की याचना की। गाँव के उन्हीं दुष्ट-जनों मे उससे कहा कि “यदि तुम संत एकनाथ को क्रोधित कर दो,
तो हम तुम्हें दो सौ रूपए देंगे हम तो पर चुके शरारत कर करके पर उन्हें क्रोध आता ही नहीं।” दरिद्र ब्राह्मण भला कब मौका चूकने वाला था। फौरन उनके घर गया, वहाँ वे न मिले तो मंदिर में जा पहुँचा,
जहाँ पर वे ध्यान-मग्न बैठे थे। वह जाकर उनके कंधे पर चढ़कर बैठ गया। संत ने नेत्र खोले और शांत मुद्रा में बोले-“ब्राह्मण देवता ! अतिथि तो मेरे यहाँ नित्य ही आते हैं, किंतु आप जैसा स्नेह आज तक किसी ने नहीं जताया। अब तो आपको मैं बिना भोजन किए वापिस नहीं जाने दूंगा।”
ईश्वर नहीं तो उसकी सृष्टि को पूजो
एक बार साधु ने आकर गाँधी जी से पूछा- हम ईश्वर को पहचानते नहीं, फिर उसकी सेवा किस प्रकार कर सकते हैं?” गाँधी जी ने उत्तर दिया- ‘ईश्वर को नहीं पहचानते तो क्या हुआ, उसकी सृष्टि को तो जानते है।
ईश्वर की सृष्टि की सेवा ही ईश्वर की सेवा है।”
साधु की शंका का समाधान न हुआ, वह बोला- ‘ईश्वर की तो बहुत बड़ी सृष्टि है, इस सबकी सेवा हम एक साथ कैसे कर सकते हैं ? ” ईश्वर की सृष्टि के जिस भाग से हम भली-भाँति परिचित हैं और हमारे अधिक निकट है,
उसकी सेवा तो कर ही सकते है। हम सेवा कार्य अपने पड़ौसी से प्रारंभ करें। अपने आँगन को साफ करते समय यह भी ध्यान रखें कि पड़ौसी का भी आँगन साफ रहे। यदि इतना कर लें तो वही बहुत है।” गाँधी जी ने गंभीरतापूर्वक समझाया। साधु उससे बहुत प्रभावित हुए।
लेखक | श्री राम शर्मा-Shri Ram Sharma |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 152 |
Pdf साइज़ | 6.6 MB |
Category | प्रेरक(Inspirational) |
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