शाक्त तंत्र में पराशक्ति का काली स्वरूप | Parashakti Ka Kali Swarup Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
हे जननि ! मृतों की भुजाओं के हाथों से निर्मित कांची (कटिभूषण) से शोभावाले नितम्बवाली; दिगम्बरी; तीनों लोकों की विधनकत्री; त्रिनयन तथा श्मशान में स्थित शव के हृदय रूपी शय्या पर स्थित,
महाकाल के साथ रतिक्रीडा में लगी हुई, तुम्हारा ध्यान करता हुआ मन्दबुद्धि मनुष्य भी कवि हो जाता है। जो-घोर शिवाओं (शरृंगालिनों) से युक्त शव समुहों के कंकालों से अत्यन्त संकीर्ण चिता
में प्रविष्ट महाकाल से विपरीत रति से सन्तुष्ट; युवति; हरवधु-तुम्हारा सदा ध्यान करते रहते हैं, उनका कभी भी परिभव नहीं होता है।’ यह पूर्वोक्त श्लोकों का अक्षरार्थ है । पराशक्ति के काली स्वरूप के इन दोनों ही ध्यानों से सामान्य रूप से यही अर्थ निकलता है
पराशक्ति का काली स्वरूप अतिभयावह है। श्मशान ही इनकी आवासभूमि है। यह नग्न है तथा कुछ धारण भी किया है, तो मुण्डों की माला तथा मृतों के हाथ की कांची । चिता अथवा शव पर यह महाकाल के साथ सम्भोग में संलग्न है।
पराशक्ति के इस प्रकार के विचित्र, भयावह तथा अश्लील ध्यान की परिकल्पना से ही सामान्य जन का मानसिक तनाव से ग्रस्ति होना स्वाभाविक ही है। इस प्रकार के ध्यानानुमोदित स्वरूप को विचारकर
जिज्ञासु के मन में सहज ही यह प्रश्न उठता है कि इस प्रकार के अश्लील, भयावह, कुत्सित स्वरूप के ध्यान से कोई साथक किस प्रकार की साधना करेगा तथा उससे भोग और मोक्ष की प्राप्ति कैसे सम्भव है। साधना में सामान्य नियम यह भी है कि ‘
देवो भूत्वा यजेद्देवम्’ अर्थात् जिस प्रकारा आराध्य का स्वरूप है तत्सदृश होकर ही आराधना की जाए। यदि साधक पराशक्ति के पूर्वोक्त काली स्वरूप के अक्षरार्थ को घ्यान में रखकर साधना के लिए प्रयत्न करेगा तब तो निश्चि
लेखक | विवेक शर्मा-Vivek Sharma |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 8 |
Pdf साइज़ | 131.4 KB |
Category | धार्मिक(Religious) |
शाक्त तंत्र में पराशक्ति का काली स्वरूप | Parashakti Ka Kali Swarup Book/Pustak Pdf Free Download