हिंदी साहित्य और भारतीयता का सार | Hindi Sahitya Aur Bhartiyta Ka Sar Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
‘हिंदीयता’ और ‘भारतीयता’ पर्याय नहीं हैं। यों तो हिंदी देश के विभिन्न भागों में बोली जाती है फिर भी यह याद रखना चाहिए कि अन्य भाषाओं की ही तरह इसका भी अपना एक सुनिर्दिष्ट भौगोलिक क्षेत्र है।
देश के विभिन्न अंचलों और क्षेत्रों के विभिन्न मातृभाषावाले समर्थ रचनाकरों ने हिंदी साहित्य के भौगोलिक क्षेत्र को हिंदी भाषा के भूगोल से कहीं बड़ी व्याप्ति दी है।
हिंदी साहित्य को यह गौरव प्राप्त है कि इसके बहुत-से शीर्षस्थ रचनाकरों की मातृभाषा हिंदी नहीं रही है। यहाँ उन साहित्यकारों की सूची देना अभिष्ट नहीं है तथापि कुछ नाम तो लिये ही जा सकते हैं।
मुक्तिबोध, रांगेय राघव, प्रभाकर माचवे और आज चंद्रकांत देवताले एवं अरविंदाक्षन जैसे साहित्यकारों के नाम तो कुछ उदाहरण मात्र हैं। नागार्जुन जैसे महत्त्वपूर्ण कवि की मातृभाषा मैथिली थी।
उन्होंने ‘यात्री नाम से बहुत कुछ मैथिली में भी लिखा है। आज मैथिली को संविधान की अष्टम अनुसूची में जगह भी मिल गई है।
मैथिली भाषा और साहित्य का नागार्जुन पर उतना ही बड़ा दावा है जितना कि हिंदी साहित्य का। कोलकाता में नागार्जुन-यात्री की प्रतिमा स्थापित की गई है, और यह सब कोलकाता में सक्रिय मैथिलों के उद्यम से हुआ है।
फणीश्वरनाथ रेणु और राजकमल चौधरी का स्मरण किया जा सकता है; कल आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, नामवर सिंह और केदारनाथ सिंह आदि के संदर्भ में भी यह प्रसंग विवेचनीय हो सकता है।
हिंदी साहित्य में भारतीयता के सार के एकांश की ही आशा की जानी चाहिए, भारतीयता के सार के संपूर्ण की नहीं। वैसे भी, भारतीयता के सार के संधान के लिए साहित्य संकेतक का- अर्थात अंगुलि-निर्देश का- ही काम कर सकता है।
लेखक | प्रफुल्ल कोलख्यान-Prafull Kolakhyan |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 10 |
Pdf साइज़ | 478 KB |
Category | साहित्य(Literature) |
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