हिंदी और तेलुगु कविता का तुलनात्मक अध्ययन Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
विश्व की किसी भी भाषा के साहित्य का प्रारम्भ कविता की विधा के साथ ही हुआ था अता: साहित्य की परिणामरं कविता अथवा काव्य की परिभाषा से निकली थीं कविता- रुप के पश्चात् साहित्य की अन्य विधाएँ भी प्रचलित हो गयी
तो काव्यशास्त्र का नाम साहित्यशास्त्र बन गया प्रस्तुत प्रबन्ध में इन विभिन्न परिभाषाओं की चर्चा उद्दिष्ट नहीं है यहाँ केवल यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि साहित्य की सब विधाओं में से कविता की विधा सबलतम है।
- काव्य-प्रयोजन : काव्य के प्रयोजन पर भी अनादिकाल से आज तक बहुत कुछ कहा गया है। सत्य, शिव, सुन्दर का निर्वहण अथवा संवहन उनमें प्रमुख है। अद्यतन खमव के साहित्य का प्रयोजन पूर्णत: सामाजिक है। वैयक्तिक आनन्द भी सामाजिकता के अन्तर्गत संलीन हो जाती है
- क्योंकि व्यक्ति समाज का एक अंग मात्र है।भारत का भाषा-परक स्वरूप : भारत बहु भाषी देश है। बहुत समय पूर्व यहाँ के दूर-स्थित लोग एक-दूसरे केलिये अजनबी थे। वार्ता-प्रसार एवं यात्रा के साधनों ने जनता को नजदीक ला रखा है।
- जब इन साधनों के अभाव में, विदेशों से भी हमारे देश में भावों का आगमन हो पाता था, तो स्वदेश में ऐसा होना कौन आश्चर्य की बात होगी? इस विचार से प्रस्तुत शोधार्थी ने समझ लिया कि राष्ट्र-भाषा हिन्दी और शोध-कर्ता की मातृ-भाषा तेलुगु के साहित्य की वस्तु एवं गतिविधियों में साम्य विद्यमान है।
- उसने पाया कि विदेशी प्रभाव से विरहित स्वदेशी राजनैतिक एवं सामाजिक परिस्थितियाँ दोनों क्षेत्रों के लोगों पर क्रियाशील रहीं जिससे जनता के सच्चे प्रतिनिधि कवियों ने उसकी एवं तजन्य परिणामों को वाणी दी। उक्त पृष्ठ भूमि प्रस्तुत शोध-कार्य, सुयोग्य पर्यवेक्षण में,
- चालू रहा और उभाषा समाज की उप और साहित्य का। भाषा समाज की अनिवार्य आवश्यकता है और साहिल भक्ति की आपाभिव्यक्ति का माध्यम है। कविता साहित्य की एक सुन्दर लिया है।
लेखक | सी.एच.भास्कर मीनन-C.H.Bhaskar Minan |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 208 |
Pdf साइज़ | 28.8 MB |
Category | काव्य(Poetry) |
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