गीता तत्त्वलोक | Gita Tattvaloka Book/Pustak PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
भारतीय वाङ्मय में श्रीमद्भगवद्गीता का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। यदि संसार के सार्वभीम साहित्य की दृष्टि से देखें तो भी इसकी गणना सर्व प्रमुख ग्रन्थों में की जा सकती है।
संसार में सम्भवतः बाइबिल को छोड़कर और कोई ऐसा ग्रन्थ नहीं है जिसका इतनी भाषाओं में प्रकाशन और प्रवर्तन हुआ हो। इसके ऊपर भारत की सभी भाषाओं में विचारक और मनीषियों की अगणित व्याख्याएं हैं।
फिर भी यह एक नवीन टीका प्रकाशित करने की आवश्यकता अनुभव हुई, यह विषय विचारणीय है। गीता तो एक ही है, किन्तु उसके व्याख्याकारों के वैदुष्य और अनुभव के कारण उसकी टीकाओं का एक विशेष स्थान हो जाता है
और उनमें मतभेद भी बहुत है। प्रस्तुत ग्रन्थ के वक्ता परम पूज्यपाद ब्रह्मलीन श्रीउड़िया बाबाजी महाराज अपने समय के एक सर्वमान्य सन्त थे। उनके अनुभव ब्रह्मनिष्ठा और त्याग वैराग्य के कारण साधु-समाज में उनका बहुत ऊँचा स्थान था।
उनके कथन में एक नवीन ओज और प्रभाव होता था। वे सदा लक्ष्य पर दृष्टि रखकर बोलते थे और थोड़े शब्दों में ही बहुत ऊँची बात कह जाते थे। वे यद्यपि कोई वक्ता, व्याख्याकार या लेखक नहीं थे।
तथापि उनमें कुछ ऐसा आकर्षण था कि लोग उनके दर्शन और वाक्य-श्रवण को सर्वदा लालायित रहते थे। ये सत्संग की दृष्टि से गीता की शंकरानन्दी टीका लेकर प्रातः काल नित्य ही कुछ प्रवचन किया करते थे।
यह प्रवचन कैसे आरम्भ हुआ उसका उल्लेख स्वामी श्री सिद्धेश्वरा श्रमजी ने अपनी अवतरणिका में किया है। उस प्रवचन को स्वामीजी, जितना हो सकता, लिख लेते थे।
बातें उसमें बहुत महत्त्वपूर्ण और जिज्ञासु साधकों के लिए उपयोगी होती थीं श्रीमहाराज जी के महाप्रस्थान के पश्चात् इनकी इच्छा हुई में उनका बहुत ऊँचा स्थान था।
लेखक | उड़िया बाबा-Udiya Baba |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 529 |
Pdf साइज़ | 55.4 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
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