धरती मेरा घर | Dharti Mera Ghar Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
“फिर खाना कौन बनाएगा शाम को?” मैंने बात टाली। “हाँ हजूर | सैर । देखिए ! मैं करता हूँ कोसिस । कहकर रेवत चला गया। मैं सोचने लगा । अजीब मुल्क है यह भी ! मेरे आगरा से इतना पास है यह रियासत भरतपुर का गांव !
वयाने से सिर्फ थोड़ी दूर । बोडी दूर ! भगवान बचाए ! ग्यारह मील जब तांगे में पार किए तो खराब सड़क पर दोघंटे लग गए । लेकिन फिर भी क्या है । जिस काम से मैं आया हूं वह क्या मामूली है ! सुना था कि वैर में कुछ पुरानी
हस्तलिखित पोथिया थीं। मेरा पुराना शोक ठहरा। चल पड़ा आगरा मे । वयाने के नाजिम साहब पढ़े थे.मेरे साथ आगरा कालेज में। उन्होंने बुलाया अफसर बनने के बाद। उनके यहां रियासती ठाठ देखे और चर्चा चली तो बोले, “भाई शर्मा!
क्यों न बैर जाकर डाकबंगले में दिन रहो।” मैने कहा, “बैर ! कैसा खराब नाम है !”बोले, “बड़ी अच्छी जगह है। पानी भी अच्छा है। डाकबंगले में दो कमरे हैं। एक में रह आओ थोडे दिन। में भी दौरे पर आऊगा उपर ।
राजेन्द्रसिह कालेज में भी दोस्त थे, और नाजिम होने पर भी है। उन्होंने छुट्टियों में बुलावा। मैं बागया।बंर आकर देखा तो मुझे अच्छा लगा। बडा गाव था। चारों ओर कच्चा गट था। घुसते ही किला दीखता या। बगल में नहर थी।
सागा पुन पार नाम के टेढ़े-मेढ़े रास्तों से निकल फुलवारी की पनी हरिवालो का चक्कर देवर, गढ़ पार करके, नोनपसे के जगल में घुसा। बाय हाय को अस्पताल की दमारते पार करके हम डाकबंगले का पहुंचे। कभी-कभार अगरेज दीवान जाता था,
लेखक | रांगेय राघव-Rangey Raghav |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 156 |
Pdf साइज़ | 7.8 MB |
Category | कहानियाँ(Story) |
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