आरोग्य निधि | Arogyanidhi PDF In Hindi

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आरोग्य निधि – Arogyanidhi PDF Free Download

आरोग्य निधि

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या गमा मादती लिए प्रयोग कर रहे हैं, वही दगाई जापान में पोसियों का कारण पारित करके प्रतिबन्धिाकर गयी है। उसके बावजूद भी प्रजा का प्रतिनिधित्व करनेवाली सरकार मातम देखते हुए शायद केवल अपन ही क्षित देख रही है।

सरकार कुछ को या न करे मेकिन आपको अगर पूर्ण रूप से स्वस्थ बना है तो आप हम जहरीली दवाइयों का प्रयोग बंद करें और कमजाय। भारतीय संस्कृति मे मेआयुर्द के जो मिटर औषधियों की टकी उन्हें अपनाये।

साथ ही आपको यह भी जान होना चाहिए किशति की दवाइयों के रूपमें आपको प्राणियों का मांस, रक्त, मछली आदि खिलाये जा रहे हैं जिसके कारण आपका संकल्पक कम हो जाती है। जिससे साधना में बरकत नहीं जाती।

इससे आपका जीवन को हो जाता है। एक संशोधनकता ने बताया कि बुफेन नामक दवा जो आप लोग को पास करने के लिए जा रहे है उसकी केवल मिलीग्राम मावाद निवारण के लिए पर्याप्त किरी आपको 250 मिलीग्राम या इससे दुगनी मात्रा दी जाती है।

यह अतिरिकत माয় आपने यकृत और गुर्द को बहुत हानि पहुंचाती है। साथ में आप साइट इक्टस स शिकार होते है हजरूरत पाव भरने के लिए प्रतिजैविक (एन्टीबायोटिकम) अंदेशी दवाइयों की नहीं है।

किसी प्रकार का प्राव हुआ हो, टकि लगवाये हो या न लगवाय ही क्रिया (ऑपरेशन) का न हो, अदल्ली पार हो या बाह

अमावस्या, पूर्णिमा, चतुर्दशी और अष्टमी तिथि को स्त्री-समागम न करे। अपनी पत्नी के साथ भी दिन में तथा ऋतुकाल के अतिरिक्त समय में समागम न करे। इससे आयु की वृद्धि होती है।

सभी पर्वों के समय ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है। यदि पत्नी रजस्वला हो तो उसके पास न जाय तथा उसे भी अपने निकट न बुलाये। शास्त्र की अवज्ञा करने से जीवन दुःखमय बनता है।

दूसरों की निंदा, बदनामी और चुगली न करें, औरों को नीचा न दिखाये। निंदा करना अधर्म बताया गया है, इसलिए दूसरों की और अपनी भी निंदा नहीं करनी चाहिए।

क्रूरताभरी बात न बोले।

जिसके कहने से दूसरों को उद्वेग होता हो, वह रुखाई से भरी हुई बात नरक में ले जाने वाली होती है, उसे कभी मुँह से न निकाले ।

बाणों से बिंधा हुआ फरसे से काटा हुआ वन पुनः अंकुरित हो जाता है, किंतु दुर्वचनरूपी शस्त्र से किया हुआ भयंकर घाव कभी नहीं भरता ।

हीनांग ( अंधे, काने आदि), अधिकांग ( छाँगुर आदि), अनपढ़, निंदित, कुरुप, धनहीन और असत्यवादी मनुष्यों की खिल्ली नहीं उड़ानी चाहिए ।

नास्तिकता, वेदों की निंदा, देवताओं के प्रति अनुचित आक्षेप, द्वेष, उद्दण्डता और कठोरता इन दुर्गुणों का त्याग कर देना चाहिए। मल-मूत्र त्यागने व रास्ता चलने के बाद तथा स्वाध्याय व भोजन करने से पहले पैर धो लेने चाहिए। भीगे पैर भोजन तो करे, शयन न करे। भीगे पैर भोजन करने वाला मनुष्य लम्बे समय तक जीवन धारण करता है।

परोसे हुए अन्न की निंदा नहीं करनी चाहिए। मौन होकर एकाग्रचित से भोजन करना चाहिए। भोजनकाल में यह अन्न पचेगा या नहीं, इस प्रकार की शंका नहीं करनी चाहिए।

भोजन के बाद मन-ही-मन अग्नि का ध्यान करना चाहिए। भोजन में दही नहीं, मट्ठा पीना चाहिए तथा एक हाथ से दाहिने पैर के अँगूठे पर जल छोड़ ले फिर जल से आँख, नाक, कान व नाभि का स्पर्श करे।

पूर्व की ओर मुख करके भोजन करने से दीर्घायु और उत्तर की ओर मुख करके भोजन करने से सत्य की प्राप्ति होती है। भूमि पर बैठकर ही भोजन करे, चलते-फिरते भोजन कभी न करे। किसी दूसरे के साथ एक पात्र में भोजन करना निषिद्ध है।

जिसको रजस्वला स्त्री ने छू दिया हो तथा जिसमें से सार निकाल लिया गया हो, ऐसा अन्न कदापि न खाय जैसे तिलों का तेल निकाल कर बनाया – दूध, रोगन (तेल) निकाला हुआ बादाम ( अमेरिकन बादाम) आदि ।

हुआ गजक, क्रीम निकाला हुआ किसी अपवित्र मनुष्य के निकट या सत्पुरुषों के सामने बैठकर भोजन न करे।

सावधानी के साथ केवल सवेरे और शाम को ही भोजन करे, बीच में कुछ भी खाना उचित नहीं है। भोजन के समय मौन रहना और आसन पर बैठना उचित है। निषिद्ध पदार्थ न खाये।

लेखक
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 169
Pdf साइज़2.2 MB
Categoryस्वास्थ्य(Health)

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